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कविता

मुबारक हो नया साल

नागार्जुन


फलाँ-फलाँ इलाके में पड़ा है अकाल
खुसुर-पुसुर करते हैं, खुश हैं बनिया-बकाल
छ्लकती ही रहेगी हमदर्दी साँझ-सकाल
-अनाज रहेगा खत्तियों में बंद !

हड्डियों के ढेर पर है सफेद ऊन की शाल...
अब के भी बैलों की ही गलेगी दाल !
पाटिल-रेड्डी-घोष बजाएँगे गाल...
-थामेंगे डालरी कमंद !

बत्तख हों, बगले हों, मेंढक हों, मराल
पूछिए चलकर वोटरों से मिजाज का हाल
मिला टिकट ? आपको मुबारक हो नया साल
-अब तो बाँटिए मित्रों में कलाकंद !

 


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हिंदी समय में नागार्जुन की रचनाएँ